Wednesday, September 15, 2010

Arya Samaj - कुरआन पर आरोपः कितने स्तरीय ?

‘सत्यार्थ प्रकाश’ के संस्करण 2006 के पृष्ठ संख्या (ग) पर संपादक की भूमिका में लिखा है कि स्वामी जी ने यद्यपि 14 समुल्लास ही लिखवाए थे, मगर इसके प्रथम संस्करण में प्रकाशक राजा जयकृष्ण दास ने 12 समुल्लास ही प्रकाशित किए। प्रथम संस्करण में अंतिम दो समुल्लास प्रकाशित न करने का कारण स्वामी जी ने यह लिखा है कि ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के प्रथम प्रकाशक राजा जी ब्रिटिश सरकार में डिप्टी कलेक्टर थे। उन दिनों भारत में ब्रिटिश सरकार का आतंक था। फलतः सरकार के मुलाजिम होने के नाते वे ईसाई सरकार को अप्रसन्न नहीं करना चाहते थे। दूसरा कारण यह लिखा है कि प्रकाशक की मुस्लिम नेताओं से व्यक्तिगत दोस्ती थी। अतः ईसाई मत और कुरआन मत का खंडन छपवाना उस समय उचित न समझा गया।

‘सत्यार्थ प्रकाश’ के द्वितीय संस्करण सन् 1882 में 14 समुल्लास प्रकाशित किए गए। यहाँ सवाल यह पैदा होता है कि सन् 1882 में न तो देश के हालात बदले और न ही हुकूमत बदली, फिर क्यों अंतिम दो समुल्लास जोड़े गए ? दूसरा सवाल यह कि प्रकाशक की व्यक्तिगत मजबूरी के कारण एक ग्रंथ को आधा-अधूरा प्रकाशित करना औचित्यपूर्ण सा नहीं लगता। प्रकाशक बदला जा सकता था। पूरी कौम की नफ़रत और दुश्मनी में 10-20 मुस्लिम दोस्तों की दोस्ती कुरबान की जा सकती थी। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के द्वितीय संस्करण में 13वें और 14वें अध्यायों का प्रकाशन संदेहपूर्ण (Doubtful) है।

‘सत्यार्थ प्रकाश’ का 14वां समुल्लास कुरआन से संबंधित है। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के रचयिता ने इस समुल्लास में बार-बार यह आरोप लगाया है कि यह कुरआन किसी अल्पज्ञ और जंगली व्यक्ति का बनाया हुआ है। खुदा के नाम से मुहम्मद साहब ने अपना मतलब सिद्ध करने के लिए यह क़ुरआन किसी कपटी-छली और महामूर्ख से बनवाया होगा। थोड़ी देर के लिए अगर यह बात मान भी ली जाए कि यह कुरआन किसी जंगली, अल्पज्ञ और महामूर्ख व्यक्ति (खुदा माफ करें) द्वारा बनाई हुई पुस्तक है तो यहाँ एक बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि क्या कोई अल्पज्ञ और जंगली व्यक्ति इतनी शुद्ध भाषा में कोई पुस्तक लिख सकता है ? तथ्यों की बात बाद में करेंगे। इस पुस्तक में व्याकरण आदि की लेशमात्र भी गलती क्यों नहीं है ? आज तक इस पुस्तक में किसी भाषा संशोधन अथवा सुधार की आवश्यकता क्यों नहीं पड़ी? 1400 वर्षों की लम्बी अवधि में भी किसी अरबी भाषा के विद्वान और विशेषज्ञ ने इस पुस्तक में कोई गलती क्यों नहीं पकड़ी? इस पुस्तक का आज तक कोई प्रूफ संशोधन क्यों नहीं हुआ? कुरआन की भाषा शैली विशुद्ध, अनूठी और अद्भुत है। क्या कोई निरक्षर व्यक्ति इतनी विशुद्ध, प्रवाहपूर्ण और अनूठी भाषा शैली का प्रयोग कर सकता है ? दूसरा सवाल यह है कि मुहम्मद साहब (सल्ल0) अपना ऐसा कौन-सा मतलब सिद्ध करना चाहते थे जिसके लिए आपको जंगली, अल्पज्ञ और छली-कपटी व्यक्तियों का सहयोग लेना पड़ा ? तीसरा सवाल यह है कि क्या कोई छली-कपटी और स्वार्थी व्यक्ति इतने उच्च नैतिक मूल्यों का प्रतिपादन और स्थापन कर सकता है जितने उच्च और उत्तम मूल्य कुरआन में प्रतिपादित किए गए हैं?

उदाहरणार्थ कुछ अंशों को देखिए -
1. ‘‘बेहयाई के करीब तक न जाओ चाहे वह जाहिर हो या पोशीदा।’’ (कुरआन 6-152)
2. ‘‘निर्धनता के भय से अपनी औलाद का क़त्ल न करो।’’ (कुरआन 6-152)
3. ‘‘जब बात कहो, इंसाफ की कहो चाहे मामला अपने नातेदार ही का क्यों न हो।’’ (कुरआन 6-153)
4. ‘‘किसी मांगने वाले को मत झिड़को।’’ (कुरआन 93-10)
5. ‘‘बुराई का बदला भलाई से दो।’’ (कुरआन 41-34)
6. ‘‘भलाई में एक दूसरे से बढ़ जाने का प्रयास करो।’’ (कुरआन 3-48)
7. ‘‘माँ-बाप को उफ तक न कहो और न उन्हें झिड़को।’’ (कुरआन 17-23)
8. ‘‘जुआ, ‘शराब, देवस्थान व पांसे गंदे शैतानी काम है इनसे अलग रहो।’’ (कुरआन 5-90)

चोथा सवाल यह है कि क्या कोई विद्याहीन और जंगली व्यक्ति रहस्य पूर्ण ब्रह्मांडीय सिद्धांतों का प्रतिपादन कर सकता है ? कुरआन में वर्णित अनेक भूगोलीय और खगोलीय तथ्य आज विज्ञान की कसौटी पर सत्य साबित होते जा रहे हैं जिन्हें उस वक्त कोई नहीं जानता था। अब क्या उक्त आरोप कि कुरआन किसी अल्पज्ञ और कपटी-छली द्वारा बनाया गया है, तर्कहीन और मूर्खतापूर्ण नहीं है ?

‘सत्यार्थ प्रकाश’ जो एक वेद विद्वान और संस्कृत के प्रकांड पंडित का लिखा हुआ बताया जाता है, इसके अब तक 38 संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। कई बार वेद-विद्वानों और विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा इसके प्रूफ शौधन का प्रयास किया गया, मगर आज तक इसकी भाषा और व्याकरण ही शुद्ध न हो सकी। क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं है कि इस ग्रंथ के संपादको और अनुयायियों ने कभी इसे न गंभीरता से लिया है और न ही कोई खास महत्व ही दिया है। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ का 38वां संस्करण जो सन् 2006 में प्रकाशित हुआ और जिसका संपादन पंडित भगवद्दत् (रिसर्च स्कॉलर) ने किया। इस संस्करण को साढ़े तीन माह तक विद्वानों की एक टीम द्वारा प्रूफ शोधन के बाद प्रकाशित कराया गया। लिखा गया है कि इस बार सर्वशुद्ध ‘सत्यार्थ प्रकाश’ देने का प्रयास किया जा रहा है, मगर नतीजा ‘ढाक के तीन पात’ व्याकरण की अशुद्धियाँ आज तक भी ‘शुद्ध नहीं हो पाई। भाषा व्याकरण तो क्या, उसमें वर्णित कुरआन की आयतों के नम्बर व तरतीब तक गलत है।

‘सत्यार्थ प्रकाश’ के रचयिता द्वारा 14वें समुल्लास में जितनी गंदी और घटिया भाषा का प्रयोग किया गया है, समीक्षा में तर्क और तथ्य भी उतने ही घटिया बचकाने और मूर्खता पूर्ण हैं। न कहीं गंभीर विचार है, न कोई युक्ति है और न तर्क। लगता है लेखक यह जानता ही न था कि तर्क क्या होता है ? तथाकथित विद्वान द्वारा कुरआन के तथ्यों के साथ जो खिलवाड़ किया गया है और बेधड़क होकर जिस तरह कीचड़ उछाली गई है, इससे प्रतीत होता है कि कथित लेखक दुराभाव के कारण अपनी अक्ल ही खो बैठा था।

समीक्षा क्रम सं0 43, 99, 112 में कथित लेखक ने लिखा है कि कुरआन का कर्ता न तो खगोल विद्या (Astronomy) जानता था और न ही उसे भूगोल (Geography½ की विद्या आती थी। लेखक ने लिखा है कि क्या सूरज और चाँद सदा घूमते हैं और पृथ्वी नहीं घूमती ? यदि कुरआन का बनाने वाला पृथ्वी का घूमना आदि जानता तो यह बात कभी न कहता कि पहाड़ों के धरने से पृथ्वी नहीं हिलती। इससे विदित होता है कि कुरआन के बनाने वाले को भूगोल-खगोल की विद्या नहीं थी।

‘सत्यार्थ प्रकाश’ के अष्टम समुल्लास में लिखा है कि सविता अर्थात वर्षा आदि का कर्ता अपनी परिधि (Axis) में घूमता है, किन्तु किसी लोक के चारों ओर (Orbit) नहीं घूमता। (प्रश्न क्रम सं0 70)

स्वामी जी ने अपनी उक्त धारणा को सत्य साबित करने के लिए यजुर्वेद का एक मंत्र भी प्रस्तुत किया है।
‘‘आ कृष्णेन रजसा वत्र्तमानो निवेशयमृतं मत्र्यं च।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्।।’’
(क्रम सं0 71)
जबकि कुरआन में लिखा है -
1. ‘‘और सूर्य वह अपने ठिकाने की तरफ चला जा रहा है।’’
“And the Sun runs onto a resting place” (36-38)
2. ‘‘और वही है जिसने रात और दिन और सूरज और चांद बनाए। सब एक-एक मदार में तैर रहे हैं।
“It is who created the night and the day and the sun and the
moon : all (the celestial bodies) swim along, each in its rounded
orbits. (21-23)

कुरआन की उक्त आयतों से स्पष्ट है कि सभी आकाशीय पिंड (All Celestial Bodies) न केवल अपनी धुरी (Axis) पर घूम रहे हैं, बल्कि अपनी-अपनी कक्षा (Orbit) में भी चक्कर लगा रहे हैं। जिस प्रकार हमारी पृथ्वी की अपनी धुरी (Axis) पर औसत गति 1610 कि.मी. प्रति घंटा और अपनी कक्षा (Orbit) में औसत गति 107160 कि.मी. प्रति घंटा है, ठीक इसी प्रकार सूरज और चांद की गतियाँ हैं। हमारा सूर्य अपने परिवार और पड़ोसी तारों के साथ एक गोलाकार कक्षा (Orbit) में लगभग 9 लाख 60 हजार कि.मी. प्रति घंटा की अनुमानित गति से मंदाकिनी के केन्द्र के चारों ओर परिक्रमा कर रहा है, जबकि सूर्य को अपनी धुरी (Axis) पर एक पूर्ण चक्कर लगाने में 25.38 दिन का समय लगता है। इन वैज्ञानिक तथ्यों में अब कोई संदेह नहीं है, क्योंकि अब यह एक आंखों देखी सच्चाई है। हमारी पूरी पृथ्वी बिल्कुल एक जैसी नहीं है। यह कहीं से समतल है तो कहीं इस पर गहरे समुद्र हैं। दूसरी बात यह कि हमारी पृथ्वी अनेक परतों से बनी हुई है। अगर पृथ्वी पर गहरे समुद्र तो होते मगर ऊँचे-ऊँचे पहाड़ न होते तो पृथ्वी का संतुलन (Balance) कैसे कायम होता ? पृथ्वी अपनी अक्ष (Axis) और कक्षा (Orbit) में संतुलित और सुव्यवस्थित गति से कैसे घूमती ? अगर पहाड़ न होते तो पृथ्वी की परतें कैसे एक दूसरे से बंधी रहती ? इस तरह के तथ्य हमें वेद मंत्रों में भी मिलते हैं। उक्त प्रकार की आयतें विज्ञान विषय से संबंध रखती हैं। बिना शोध, अन्वेषण और जानकारी के उक्त प्रकार की आयतों की समीक्षा लिखना क्या बौद्धिक पागलपन को नहीं दर्शाता ?
जिस विद्वान ने कुरआन पर यह आरोप लगाया है कि कुरआन का कर्ता यह भी नहीं जानता की पृथ्वी घूमती है, उस तथाकथित विद्वान को कुरआन का कितना ज्ञान था ? इसके साथ तथाकथित विद्वान ने यह भी कहा है कि सूर्य किसी लोक के चारों ओर नहीं घूमता। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के कर्ता की यह बात भी झूठी साबित हो गई। अफ़सोस इस बात का है कि आरोपी ने आरोप भी इतनी ढीठता और दंभ के साथ लगाए हैं, मानो वह स्वयं पृथ्वी आदि का बनाने और घुमाने वाला हो।

चैदहवें समुल्लास के रचयिता ने लिखा है कि कुरआन की दृष्टि से सारे हिंदू काफ़िर हैं, क्योंकि वे कुरआन और पैगम्बर को नहीं मानते। कुरआन की शिक्षा और आदेश यह है कि ‘‘काफिरों का कत्ल करो।’’ (समीक्षा क्रम सं0 2) कोई बताए कि कुरआन का अवतरण किस देश में कब और किस प्रकार हुआ ? कुरआन में जब यह हुक्म दिया गया तब कुरआन और पैग़म्बर को मानने वाले कितने लोग थे ? क्या 1000-1500 लोगों को ये हुक्म देना कि सारी दुनिया के लोग काफ़िर हैं, इन्हें जहां पाओ कत्ल करो, औचित्यपूर्ण और मुसलमानों के हित में था ? क्या 1000-1500 आदमी सारी दुनिया के काफ़िरों को कत्ल कर सकते हैं ?

‘सत्यार्थ प्रकाश’ के लेखक ने मुसलमानों के लिए जंगली, अल्पज्ञ, विद्याहीन, म्लेच्छ, दुष्ट, धोखेबाज़, लड़ाईबाज़, गदर मचाने वाले, अन्यायी, विषयी (Sexual) आदि अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया है। वेद, मनुस्मृति और सत्यार्थ प्रकाश के कर्ता अनार्य (मुसलमान आदि), दुष्ट और वेदनिंदकों के लिए क्या सजा है ? यह वेद विद्वान अवश्य जानते होंगे। अगर नहीं जानते तो आइए देखिए

‘सत्यार्थ प्रकाश’ में कहाँ क्या लिखा है?
1. ‘‘आर्यों से भिन्न मनुष्यों का नाम दस्यु है।’’
(समुल्लास-11, क्रम सं0-1),
2. ‘‘दस्यु दुष्ट मनुष्य को कहते हैं।’’
(स्वमंत व्यामन्तव्यप्रकाशः क्रम सं0 29)।
3. ‘‘दुष्ट मनुष्य को मारने में हन्ता को कोई पाप नहीं लगता।’’ (षष्ठ समु0 मनु0-11)।
जब आर्यों से भिन्न सभी मनुष्य ‘दुष्ट’ हैं और उन्हें मारने में भी कोई पाप नहीं है तो फिर ‘काफिर’ शब्द को लेकर इतना बवाल क्यों ? जिस प्रकार वेद के न मानने वालों को नास्तिक कहा गया है, ठीक उसी प्रकार कुरआन के न मानने वालों को काफ़िर कहा गया है। यह कैसा चरित्र और कैसी नैतिकता है कि हमारी हर बात सही और दूसरों की सही भी गलत ? कुरआन में तो काफ़िर शब्द उन लोगों के लिए आया है कि जो हक़ के दुश्मन थे और साजिशें कर रहे थे। कुरआन की प्रत्येक आयत अपना एक ख़ास संदर्भ रखती है। संदर्भ को समझे बिना हम किसी आयत का अर्थ और भावार्थ नहीं समझ सकते।

समीक्षा क्रम सं0 159 में लिखा है कि ऊँटनी के लेख से यह अनुमान होता है कि अरब देश में ऊँट-ऊँटनी के सिवाय दूसरी सवारी कम होती है। इससे सिद्ध होता है कि किसी अरब देशीय ने कुरआन बनाया है। उक्त बात से पाठक ये अंदाजा बखूबी लगा सकते हैं कि जो आदमी कुरआन की समीक्षा लिखने बैठा है, उसका बौद्धिक स्तर कितना ऊँचा है ? वह यह भी नहीं जानता था कि कुरआन का अवतरण कब, कहाँ और किस प्रकार हुआ? उसने कुरआन में ऊँट शब्द पढ़कर अनुमान लगाया कि कुरआन किसी अरबी व्यक्ति द्वारा बनाया गया है।
समीक्षा क्रम सं0 34 में लिखा है कि सुअर का निषेध, क्या मनुष्य का मांस खाना उचित है ? कितना बचकाना और बेतुका सवाल है ? कुरआन में नशे (शराब) का निषेध किया है। अब कोई यह सवाल करें कि कुरआन में जहर और तेज़ाब पीने का निषेध क्यों नहीं किया गया है ? तो क्या यह सवाल और आरोप मूर्खतापूर्ण नहीं होगा ? इस तरह तो एक पुस्तक खाने-पीने के विधि-निषेधों के लिए ही अपर्याप्त रहेगी। तात्कालिक समाज में जो बड़ी बुराइयाँ होती हैं, एक संदेशवाहक द्वारा उनकी ही निशानदेही की जाती है। आगे लिखा है कि मुर्दार हराम तो मारकर क्यों खाते हैं ? एक वेद विद्वान इतना भी नहीं जानता कि मुर्दार किसे कहते हैं ?

दिन में न खाना, रात को खाना सृष्टि क्रम के विपरीत है ? (समीक्षा क्रम सं0 35)। यह भी कितना बचकाना आरोप है ? कोई बताए कि उक्त तथ्य में कितनी वैज्ञानिक सच्चाई है ? अक्सर लोग दिन छिपने के बाद ही खाना खाते हैं। समीक्षा क्रम सं0 51 में लिखा है ‘‘जिस समय ईसाई और मुसलमानों का मत चला था, उस समय उन देशों में जंगली और विद्याहीन मनुष्य अधिक थे इसलिए ऐसे विद्या विरूद्ध मत चल गए। अब विद्वान अधिक हैं, इसलिए आज ऐसा मत नहीं चल सकता। किन्तु जो-जो ऐसे पोकल मज़हब हैं वे भी अस्त होते जाते हैं। वृद्धि की तो कथा ही क्या है?’’ क्या उक्त आरोप किसी बुद्धिमान और जानकार व्यक्ति का हो सकता है ? क्या वास्तव में ईसाई और मुसलमान मत खत्म होते जा रहे हैं ? कोई बताए विद्वानों का कौन-सा मत है जो आज फैलता जा रहा है ? जैसा कि लिखा है कि अब विद्वान अधिक हैं, कोई बताए कि सन् 1875 में जब लेखक ने उक्त समीक्षा लिखी थी, कितने विद्वान थे ? स्वामी जी ने एक-एक कर सबकी ऐसी बखिया उधेड़ी है कि कोई भी बेदाग न छोड़ा। कोई मत ऐसा नहीं था जिसका लेखक ने खण्डन न किया हो।

समीक्षा क्रम सं0 53 में लिखा है कि अल्लाह ने तीन हजार फरिश्तों से मुसलमानों की मदद की, तो अब मुसलमानों की बादशाही बहुत सी नष्ट हो गई है और होती जाती है, अब अल्लाह क्यों मदद नहीं करता ? वैसे तो कुरआन की उक्त आयत एक खास संदर्भ में कही गई है मगर क्या दुनिया से मुसलमानों की बादशाही नष्ट हो गई है या उस वक्त से ज़्यादा है जब यह समीक्षा लिखी गई थी ? कोई यह भी तो बताए कि आरोप लगाने वालों की बादशाहत दुनिया में कितनी और कहाँ-कहाँ है ? आगे कुछ बाते मैं संक्षेप में लिख रहा हूँ ताकि आलेख बहुत लम्बा न हो जाए।
समीक्षा क्रम सं0 98 ः ‘‘क्या खुदा ऊपर रहता है ?’’ क्या यह भी कोई आरोप है ? आरोपों का स्तर देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आरोपी कोई विकृत मानसिकता का व्यक्ति था। क्या उक्त आरोप का भावार्थ यह नहीं है कि खुदा सबसे बड़ा और ऊपर है। समीक्षा क्रम सं0 99 ः क्या चांद, सूरज सदा फिरते हैं और पृथ्वी नहीं फिरती ? कुरआन में यह कहाँ लिखा है कि पृथ्वी नहीं घूमती ? समीक्षा क्रम सं0 96 ः और जो खुदा मेघ विद्या जानता तो आकाश से पानी उतारा लिखा पुनः यह क्यों लिखा कि पृथ्वी से पानी ऊपर चढ़ाया ? लगता है आरोप लगाने वाला व्यक्ति कोई ज्यादा बड़ा वैज्ञानिक और पदार्थ विद्या का विशेषज्ञ है। कोई बताए इसमें क्या कुछ गलत लिखा है ? वर्षा का एक चक्र है जो घूमता रहता है।
समीक्षा क्रम सं0 104 ः ‘‘प्रत्येक की गर्दन में कर्म पुस्तक। हम तो किसी एक की गर्दन में भी नहीं देखते ?’’ कितना विद्वतापूर्ण आरोप है ? भला आत्मा कहीं दिखाई देती है ? ‘शायद हम कर्मपत्र को मरने के बाद ही समझे।

समीक्षा क्रम सं0 105 ः न्याय तो वेद और मनुस्मृति में देखो जिसमें क्षणमात्र भी विलम्ब नहीं होता और अपने-अपने कर्मानुसार दण्ड व प्रतिष्ठा सदा पाते रहते हैं। कोई बताए वह कौन-सी जगह है जहाँ हर क्षण न्याय हो रहा है? एक व्यक्ति अपनी पूरी जिंदगी लूट खसोट करता है, मगर यहाँ उसका कभी बाल-बांका नहीं होता।

समीक्षा क्रम सं0 142 ः दूध की नहरे कभी हो सकती हैं? क्योंकि वह थोड़े समय में बिगड़ जाता है। भला जिसने इतना विशाल और अद्भुत ब्रह्मांड बनाया, क्या वह ऐसे दूध की नदियां नहीं बहा सकता जो कभी खराब न हो ? यहाँ दूध का मतलब गाय-भैंस का दूध नहीं है, बल्कि दूध जैसा पौष्टिक और स्वादिष्ट कोई पेय पदार्थ है जो पानी जैसा भी हो सकता है।
समीक्षा क्रम सं0 129 में मुहम्मद (सल्ल0) को विषयी (Sexual) और समीक्षा क्रम सं0 152 में कुरआन को समलैंगिकता ¼Homosex½ का मूल बताया है। क्या इतना झूठा और घटिया आरोप लगाकर कथित लेखक ने निकृष्ट मानसिकता का परिचय नहीं दिया है ?
अक्सर अखबार में कुछ इस तरह के ‘शीर्षक लगाए जाते हैं। ‘‘सोने की हो गई चांदी’’, ‘‘चांदी औंधे मुंह गिरी’’। अगर कोई व्यक्ति उक्त शब्दों का बिना भावार्थ समझे यह आरोप लगाने लगे कि सोने की चांदी कैसे हो सकती है ? चांदी के कोई मुंह होता है जो वह मुंह के बल गिर जाएगी ? तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उक्त व्यक्ति में कितनी अक्ल होगी। 14वें समुल्लास के कर्ता की अक्ल उक्त व्यक्ति से ज्यादा नहीं है। संदर्भ को बिना समझे केवल बाह्य ‘शब्दों और अर्थां के आधार पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना और तर्कां का जवाब कुतर्कों से देना कहाँ का पांडित्व और विद्वता है ?

यहाँ यह भी विचारणीय है कि ‘‘कुरआन ईश्वरीय पुस्तक नहीं है।’’ यह साबित करने के लिए 200-400 आरोपों की भला क्या जरूरत है ? इसके लिए तो केवल एक ही आरोप काफी है बशर्ते उसे ठोस सबूतों से साबित किया जाए। इतने ढेर सारे आरोप लगाकर तो कथित व्यक्ति ने अपने आपको निर्बुद्धि, कपटी और सिरफिरा ही साबित किया है। ऐसा व्यक्ति जो किसी पुस्तक की न मूल भाषा जानता हो और न ही उपभाषा और बिना किसी अध्ययन और चिंतन के समीक्षा लिखनी प्रारम्भ कर दे और समीक्षा भी उस भाषा में लिखे, जिस भाषा का उसे समुचित ज्ञान न हो। क्या यह मूर्खता और धूर्तता की पराकाष्ठा नहीं है ?

उक्त बातों से स्पष्ट है कि ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के 14वें अध्याय की भाषा और तथ्य एक संन्यासी, वेद विद्वान, संस्कृत के प्रकांड पंडित के चरित्र से कोई मेल नहीं रखते। निकृष्ट और दंभ पूर्ण भाषा, मूर्खता पूर्ण और बचकाने तर्कों और तथ्यों का एक बाल ब्रह्मचारी, आचार्य और अध्यात्मवेत्ता के व्यक्तित्व और कृतित्व से भला क्या लेना-देना ? झूठ, कटु आलोचना, निंदा, गाली-गलौच, अमर्यादित और अहंकार पूर्ण भाषा, क्रोध, नफरत, पूर्वाग्रह आदि सब मनु द्वारा प्रतिपादित धर्म के 10 लक्षणों और एक ब्रह्मचारी के चरित्र और आचरण के बिल्कुल विपरीत है। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के 14वें अध्याय को एक ब्रह्मचारी और वैदिक विद्वान से जोड़ना हिमाकत और धृष्टता है। रामकृष्ण मिशन के संस्थापक स्वामी विवेकानन्द (1683-1902) को भी कुरआन के तथ्यों पर आपत्ति थी, मगर उन्होंने तो कभी कुरआन और पैग़म्बर के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक और अपमानजनक शब्दों का प्रयोग नहीं किया।

7 comments:

  1. कॉमन सेंस से काम लेने वाला हरेक आदमी कवि के झूठ को बड़ी आसानी से पकड़ लेगा।
    http://vedquran.blogspot.com/2010/09/real-praise-for-sri-krishna-anwer-jamal.html

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  2. गिप्ता जी
    सच बतएये क्या आप वाकेई हिन्दू हैं ? जैसा की आप के नाम से लगता है , या आप मुसलमान हैं जैसा की आप के काम से लगता है ? अगर आप वाकेई हिन्दू हैं तो मेरी तरफ से आप को मुबारकबाद क्यूँ की आप उन सच्चे हिन्दुओं में से हैं जिनकी तादाद शायद हिनुस्तान में शायद १०० भी नहीं होगी.
    बहुत अच्छा लिखा है आपने !

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  3. VED, QUARAN BIBLE OR OTHER BOOKS ARE NOT SAID BY GOD. ALL CREATED BY HUMAN. WHY ALL OF YOU QUARREL ABOUNT VED QUARON ETC.PRAY IN ARBI CALLED MUSLIM AND PRAY IN OTHER LANGUAGE CALLED HINDU OR OTHER. WHY MUSLIM PRAY ONLY IN ARBI, ALLAH KNOW ALL LANGUAGE. TNE NAME OF ALLAH IS ENOUGH. IN NDIFFERENT LANUAGE HE CALLED IN DIFFENECE NAME.GOD KNOW EVERYTHING, IN VED, KURAN AND BIBLE SEVERAL PARAGRAPHS ARE GOING TO WRONG SIDE. WHY GOD SAY SO?

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  4. BLOGGER ARE DEVIL. HE DELETED MY COMMENT EVERYTIME. BE INSAN

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  5. क्या आप सही में हिंदू हो ? और एक सवाल, क्या आपने कभी हिंदूओंको धर्मयुद्ध के नाम पर किसी देश पर आक्रमण करते देखा है ? मगर अनेको इस्लामिक राष्ट्र या आतंकवादी ये काम कर रहे है...! पुरे विश्व में होनेवली आतंकी गतीविधियोमें ९५% गतिविधिया इस्लामिक आतंकवादी चालते है....!

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  6. वाह सतीश खूब लिखा, मजा आ गया, लाजवाब

    युवराज- जितने अधिक बरतन होंगे उतना ही खडका करेंगे, हिन्‍दू भाई केवल यहीं बहुसंख्‍यक हैं इसलिए यहां की हालत पर नजर डालो

    प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन

    * बब्बर खालसा इंटरनेशनल
    * खालिस्तान कमांडो फोर्स
    * खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स
    * इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन
    * यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा)
    * नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट बोडोलेंड (एनडीएफबी)
    * पीपल्स लिब्रेशन आमी (पीएलए)
    * यूनाइटेड नेशनल लिब्रेशन फ्रंट (यहव, एनएलएफ)
    * पीपल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांग्लेईपाक (पीआरईपीएके)
    * कांग्लेईपाक कम्युनिस्ट पार्टी (केसीपी)
    * कैंग्लई याओल कन्चालुम (केवाईकेएल)
    * मणिपुर पीपल्स लिब्रेशन फ्रंट (एमपीएलफ)
    * आल त्रिपुरा टाइगर फोर्स
    * नेशनल लिब्रेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा
    * लिब्रेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई)
    *कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पीपल्स वार, इसके सभी फार्मेशन और प्रमुख संगठन।
    * माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) इसके सभी फार्मेशन और प्रमुख संगठन।
    * तमिलनाडु लिबरेशन आर्मी (टीएनएलए)
    * तमिल नेशनल रिट्रीवॅल टुप्स (टीएनआरटी)
    * अखिल भारत नेपाली एकता समाज (एबीएनईएस)
    .....

    * रणवीर सेना

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  7. why you have only 10 followers.just think!

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